दलबदल निरोधक कानून के कारण सीमित हुई सांसदों की शक्तियां :जीवी गुप्ता

Radhe shyam ji23अगस्त, 2015 : पंचकूला। देश में जब से दल बदल निरोधक कानून अस्तित्व में आया है तब से सांसदों की शक्तियां सीमित हो गयी हैं। ये जनप्रतिनिधि अब जनता की आवाज बनने की बजाय सिर्फ पार्टी लाइन की बात करते हैं। इससे सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि सृजनात्मक विषयों को छोड़ कर नकारात्मक मुद्दों पर आंदोलन होने लगे हैं। पिछले दिनों संसद के शीतकालीन सत्र के गतिरोध का भी प्रमुख कारण यही रहा। यह विचार पंचनद शोध संस्थान की ओर से सेक्टर-10 स्थित गुर्जर भवन में रविवार को आयोजित विचार गोष्ठी में सेवानिवृत आईएएस अधिकारी श्री जीवी गुप्ता ने प्रकट किये। विचार गोष्ठी की अध्यक्षता पंचनद शोध संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. केएस आर्य ने की। भोपाल स्थित माखन चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति श्री राधेश्याम शर्मा ने वैचारिक जगत में पंचनद की भूमिका और कार्यप्रणाली की जानकारी दी।
गोष्ठी के मुख्य वक्ता श्री जीवी गुप्ता ने इस बात पर चिंता जताई कि देश में सत्ता पक्ष और विपक्ष ने यह मान लिया है कि संसद की कोई उपयोगिता नहीं है। गतिरोध का मूल कारण भी यही है। उन्होंने कहा कि संसद को जिस प्रकार गतिरोध का सामना करना पड़ रहा है वह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि वर्तमान व्यवस्था में कोई भी सांसद चाहते हुए भी पार्टी लाइन से हटकर अपने विचार रख नहीं सकता है, जिसके कारण जनता की आवाज दब रही है। क्षेत्रीय दलों पर कुछ परिवारों का नियंत्रण होने के वजह से लोकतांत्रिक भावना का ह्रास हो रहा है। इन दलों के प्रतिनिधि स्वतंत्र रूप से न तो अपनी बात रख पा रहे हैं और न ही कोई निर्णय ले पा रहे हैं। इसके चलते इन दलों के नेताओं का पूरा ध्यान पार्टी नेतृत्व को खुश करने में ही लगा रहता है, क्योंकि उन्हें पता है कि उनकी उम्मीदवार का चयन पार्टी नेतृत्व द्वारा ही किया जाना है और पार्टी की कृपादृष्टि रहने तक ही वे अपने पद पर बने रह सकते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में कई बार जनहित को भी ठेस पहुंचती है।
उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार के उस पहले फैसले का स्वागत किया जिसमें योजना आयोग का खत्म कर नीति आयोग बनाया गया। श्री गुप्ता ने कहा कि यह देश में आर्थिक विकेंद्रीकरण की शुरुआत है जोकि नितांत जरूरी है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि विकास के लिए आर्थिक विकेंद्रीकरण की तर्ज पर राजनीतिक शक्तियों का भी विकेंद्रीकरण होना चाहिए। इसके लिए उन्होंने अमेरिका और कई यूरोपीय देशों के उदाहरण दिये। उन्होंने कहा कि अमेरिका में केंद्र की फेडरल सरकार मुद्रा, विदेश नीति, विदेश व्यापार, रक्षा आदि सिर्फ चार विषयों पर ही फैसले लेती है, बाकि विषयों पर राज्य सरकारें और अधिकतर शक्तियां नगर निगमों के मेयरों के पास हैं। इंग्लैंड में संसद की गरिमा इतनी है कि उसे सर्वोच्च न्यायालय से भी बड़ा दर्जा मिला है।
पंचनद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री अशोक मलिक ने कहा कि पंचनद शोध संस्थान की स्थापना 1983 में हुई थी और तब से यह संगठन राष्ट्रहित के विषयों पर चिंतन-मंथन और शोध का कार्य कर रहा है। विचार गोष्ठी में पंचकूला और चंडीगढ़ के सेवानिवृत अधिकारियों और प्रबुद्ध नागरिकों ने भी विचार रखे।
इस मौके पर सचिव दिनेश कुमार ने पंचकूला अध्ययन केंद्र की टीम जिसमें अध्यक्ष श्री एसपी शर्मा, उपाध्यक्ष श्री अद्वितीय खुराना, कोषाध्यक्ष श्री सुखदेव धीमान, डॉ. एसके पूनिया का परिचय भी करवाया गया। इस मौके पर पंचनद शोध संस्थान के चंडीगढ़ चैप्टर के संयोजक श्री केशव खुराना, श्री दिवाकर कुमरिया, डॉ. एमडी पाण्डेय समेत बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी मौजूद रहे।

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