कुमार अमिताभ , वैशाली : कोरोना संकट से मानव की जान तभी बचेगी जब मां पृथ्वी की रक्षा होगी, ऐसा निष्कर्ष मातृदिवस रविवार 10 मई को आयोजित ऑनलाइन संगोष्ठी में निकल कर आया। साथ ही इस संकट से निपटने में आगे बढ़ विश्व का नेतृत्व करने से भारत के उत्थान की संभावना भी जताई गई। ” कोरोना संकट के मंथन से उपजा अमृत ” विषय पर ‘ वैशाली, गाजियाबाद पंचनद शोध संस्थान ‘ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में संस्थान निदेशक प्रो० बृज किशोर कुठियाला सहित समन्वयक डा० कृष्ण चंद्र पांडेय, शाखा अध्यक्ष राकेश कुमार अग्रवाल, उमेश कुमार, पीयूष कांति, डा० सपना बंसल,वी के मिश्रा, संजय कुमार मित्तल, डा० एस सी गोयल, मुकेश गौतम, अनूप रावत एवं कुमार अमिताभ सहित बड़ी संख्या में सदस्यों ने भाग लिया।
प्रलयंकारी कोरोनावायरस की तबाही से मानवजाति को हो रही परेशानियों के बीच प्रकृति ने कुछ बेहद सकारात्मक संदेश भी संपूर्ण विश्व को दिया है। विनाशवादी भोगी अपविकास की भगदड़ भसड़ से मानव दूर हटे और सहज मितव्ययी सुसंस्कृत जीवन पद्धति अपनाए। उल्लेखनीय है, भारतीय सभ्यता, इसकी संस्कृति, जीवनचर्या, चरित्र, मूल्य, मानदंड बिल्कुल उसी लीक पर मानव को चलने का निर्देशन करते रहे हैं और खरे उतरते हैं। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने घोर संकट, अव्यवस्थाओं, सीमित साधनों, भीतरी बाहरी संकटों के बीच भी अपने देश को संभालने के साथ पड़ोसी कुटिल नेतृत्व के दबाव को दरकिनार कर, अलबलाये हताश सुपरशक्तिमान विकसित देशों को भी सांत्वना सहयोग देते हुए जिस कदर विश्व का नेतृत्व संभाला है और संकट मुक्ति का विश्वास जगाया है, वह अप्रतिम है। विश्वगुरु के प्राचीन पदवी को सार्थक करने के साथ, यह पराक्रम पुनः विश्व पटल पर भारत के उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
वक्ताओं के विचार मंथन में उपजे नवनीत, अमृत के सदुपयोग और इसे सुरक्षित हाथों में ही बनाए रखने से विश्व कल्याण संभव है। बहुत सी मानवीय गतिविधियों, क्रियाकलापों, व्यवहार, आचार, विचार, आकांक्षाओं, व्यापार, आहार, विहार, आयोजन, प्रयोजन, निष्ठा, चेष्टा आदि में बड़े पैमाने पर संशोधन, सुधार, परिवर्तन, नवीनता लाने की जरूरत है। भारत, संपूर्ण संसार का मार्गदर्शन करने के साथ नयी विश्व व्यवस्था निर्माण प्रक्रिया का नेतृत्व करने की दिशा में अग्रसरित है। हम सभी को इस यज्ञ में आहुति देना चाहिए, मात्र मानव कल्याण ही नहीं, समस्त चराचर जगत की भलाई व रक्षा का यह कार्य आगे बढ़ाना चाहिए।
कुमार अमिताभ ने विषय प्रस्तुत करते हुए आवाह्न किया कि कोरोनवायरस से डरने, घबराने, भागने, तिरस्कार करने के बजाय इस संकटकाल के माध्यम से प्रकृति, ब्रह्मांड हमें क्या संदेश देना चाह रही है, उसे सुनने समझने अपनाने की ओर प्रयास प्रारंभ कर देना चाहिए। इसके सकारात्मक पक्ष को सभी मिलकर सामने लाएं, अपने अपने अनुभव, ज्ञान, संस्कृति, क्षमता से मंथन द्वारा मानवीय गतिविधियों, व्यवहार, आचरण व आकांक्षाओं को संतुलित करने के साथ वास्तविक उत्थान का मार्ग प्रशस्त करें। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने अपने लघुतम रूप माने जाने वाले नगण्य कृति ( वायरस) का तांडव भर दिखाकर खुद को भगवान समझने लगे मानव को आपादमस्तक झंझोड़ दिया है। उन्हें ठप करने के साथ दो ढाई सौ सालों के कथित मानवीय विकास से हुए व्यापक विनाश व क्षति की मात्रा की भी दो ढाई महीनो में जबरदस्त भरपाई कर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर दी है। प्रकृति को मानव की नहीं, मानव को प्रकृति की जरूरत है, यह बता दिया है।
मानव को उपभोग के बजाय उपयोग आधारित जीवन पद्धति अपनानी होगी। रोजगार धंधे, विकास की राह में भी मूलभूत जरूरतों के अनुरूप ही काम धंधों को अपनाना होगा। व्यर्थ के कृत्रिम प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थ, गैर जरूरी वस्तुओं, बेहिसाब उत्पादन व बर्बादी आदि से बचना होगा अगर पृथ्वी पर लंबा जीवन, मानव चाहता है। जीवनावश्यक खेती, खाद्य प्रसंस्करण, वसन, निवास, सहज आमोद प्रमोद के अलावा कारपोरेट स्तर पर केवल बड़े राष्ट्रीय, अंतरर्राष्ट्रीय, संपूर्ण जीव-जगत कल्याण, शोध आदि कर्म की ही अनुमति हो। इसी तरह व्यक्तिगत जीवन में अनावश्यक बेहिसाब वस्तुओं के इस्तेमाल, बर्बादी से बचना होगा। अपने व्यवहार में संतुलन, सफाई, भीड़ भाड़, धक्का-मुक्की, बेईमानी, चालाकियां, हक मारने जैसी प्रवृत्तियों पर काबू पाना होगा। परिवार, पास-पड़ोस, समाज, बुजुर्गों, साधनहीन लोगों को साथ लेकर चलने का संदेश भी प्रकृति दे रही। कई स्वास्थ्य रक्षा के वैज्ञानिक तौर तरीकों को भूलकर या सांकेतिक विधि से मात्र खानापूर्ति करने व मजाक उड़ाये जाने का परिणाम भी इसे मान सकते हैं। सार्वजनिक आवागमन के स्थल, दुकानों, व्यापार केंद्रों में नीबू मिर्च के इस्तेमाल, घर या प्रतिष्ठान के अंदर जूता न लें जाने, नित्य संध्या वंदन, योग कसरत आदि की जरूरत अब पुनः समझ आ रही। खान-पान में मांसाहार के बजाय शाकाहार आदि की अनिवार्यता सारी दुनिया को समझ आ रही है।
वी के मिश्रा ने कहा सबसे बड़ी बात हमारी दिनचर्या इस संकट काल में सुधर गई है। समय पर सोना, उठना, योग प्राणायाम, घरवालों के साथ समय बिताना कितना शांत आनन्दमय जीवन हो गया है। समाज में आपसी प्रेम-भाव, सुख-दुख बांटने की भावना बढ़ी है। परिचित हों या अनजाने जो भी संकट में दिख रहा लोग बढ़कर मदद कर रहे। एक बेहतर पहलू यह भी उभर कर आया है कि पुलिस, प्रशासन, स्वास्थ्यकर्मी व सफाई कर्मियों ने जिस तरह सेवाभाव से काम किया है उसकी सराहना सभी कर रहे। जगह जगह उनका सम्मान हो रहा, आपसी दूरियां, अविश्वास कम हुआ है। सरकार ने भी आपसी विश्वास बढ़ाने हेतु प्रोत्साहित किया है। एक बड़ी बात और हुई है जो सामाजिक परिवर्तन की ओर इंगित कर रहा है। वह यह कि बड़ी संख्या में मजदूर अपने गांव लौट रहे और इस घटना ने उन्हें शहरी जीवन से विरक्त किया है। बहुत कम ही मजदूर वापस लौटेंगे, क्योंकि गांव में भी अब कई तरह के कामकाज और अर्द्धशहरी जीवन सुविधाएं तो पहुंच ही गई हैं।
डा० सपना ने कहा पृथ्वी, मां है और हम विवेक के स्तर पर उससे दूर चले गए थे, बिखर गए थे। खुद को ईश्वर प्रकृति से ऊंचा समझने लगे थे। उसने समझाया कि मेरा एक मामूली लगभग अदृश्य कण भी बिफर गया तो मानव तू समझ लें, क्या होगा। आइए आज मातृदिवस को हम संकल्प लें, मां से वापस जुड़ने का, उसके अनुसार जीने का, तभी निस्तार है।
उमेश कुमार ने कहा, हमारी गलतियां खुलकर सामने आईं। हम सभी का स्वास्थ्य धन के प्रति ध्यान आकर्षित हुआ। यह वो अवसर है जिसका सही इस्तेमाल अपनी गलतियां सुधारने और सही रास्ते पर चलने के लिए समस्त संसार को करना होगा। इस मौके पर चीन की चिरौरी के बजाय तेजी से विभिन्न चिकित्सा सामग्री व यंत्र निर्माण में भी भारत ने कमाल की तेजी व विशेषज्ञता पेश की। मात्र दो महीने में शून्य से निर्यात योग्य स्तर पर संकल्पना, कच्चा माल, मशीनरी, मानवबल आदि इंतजाम के साथ उत्पादन कर दिखाया।
महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक, तकनीकी संस्थान, शैक्षिक संस्थान, गैर सरकारी संस्थाओं, सरकारी व निजी कंपनियों ने मिलकर शेष कार्यों को छोड़ पीपीई किट, मास्क, वेंटिलेटर, टेस्टिंग किट, ग्लब्स आदि डिजाइन, व उत्पादन में खुद को झोंक दिया।
संजय कुमार मित्तल ने कहा कि सबसे बड़ी बात आदमी को यह समझ में आ गया है कि विकास नहीं, आपकी जीवनरक्षा ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, अनावश्यक विकास के चूहा दौड़ का खास मतलब नहीं है। व्यापारी, उद्यमी भी शिद्दत से इस तथ्य को महसूस कर रहे। इस संकट ने उन्हें चिंतन को मजबूर किया है। मालिक मजदूर के संबंध पहले जैसे नहीं रह जायेंगे, बेहद सकारात्मक परिवर्तन नजर आएगा। एक दूसरे का ख्याल वह रखेंगे। हमें समझ आ रहा कि हमारे जीवन का क्या लक्ष्य होना चाहिए। देश के नागरिकों को देखिए कैसे बाहर आ कर सेवा कर रहे, देश के लिए तन मन धन से लगे हैं। उन्हें महसूस हो रहा कि देश से केवल लेना नहीं, हमें देना है, साझा करना है, सुख दुख सबकुछ साथ बांटना है।
उन्होंने कहा कि विश्व स्तर पर वर्तमान काल में भारत और चीन दो सर्वाधिक तीव्र गति से विकासमान प्रतिस्पर्धी देश थे। चीन ने संकटकाल में पहले तो यह रोग फैलाने की बदनामी झेली। उसके बाद भी बेशर्मों की तरह अपनी अर्थव्यवस्था बढ़ाने, दूसरों के व्यापार पर कब्जा करने और घटिया स्वास्थ्य सामग्री आपूर्ति के गोरखधंधे में अपनी मिट्टी पलीद कर ली। दूसरी तरफ भारत अपनी जनता की देखभाल के साथ बड़े भाई की तरह जिम्मेदारी और सद्भावना से वसुधैव कुटुंबकम् नीति प्रदर्शित करते हुए छोटे बड़े सभी देशों की मदद को हाथ बढ़ाया, दवाएं व अन्य सहायता सामग्री भेजी। यहां तक कि दुश्मन देश पाकिस्तान की भी मदद की है। अब वैक्सीन बनाने में भी तीन चार देशों के साथ भारत आगे चल रहा। जल्द ही इस संहारक रोग की सही दवा भी हमारे साथ में होगी जिससे समस्त संसार को मदद की आशा है।
पीयूष कांति ने कहा यह एक अवसर है। हमें आत्मश्लाघा से बचते हुए अपनी संस्कृति की अच्छी परंपराओं को साथ लेते हुए, वर्तमान तकनीकी कुशलता के साथ सामंजस्य बिठाते हुए आत्मनिर्भरता हासिल करनी है। हमारे एम एस एम ई सेक्टर में बहुत अच्छी संभावनाएं हैं। मानवबल का सम्मान करें तो इस संकटकाल से उबरने और बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की संभावनाओं से भरपूर यह बेहतरीन समय है।
अनूप रावत ने आई टी सेक्टर के लिए इस समय को भाग्योदय काल की तरह चित्रित किया। उन्होंने कहा कि चीन की हरकतों ने दुनिया को परेशान कर दिया है। दर्जनों देश वहां से व्यापार समेटने को तत्पर हैं। इस दृष्टि से आई टी के क्षेत्र में भारत में उपलब्ध तकनीकी कुशल मानवबल विदेशी कंपनियों को आकर्षित करेगा।
डा एस सी गोयल ने कहा कि कोरोना संकट से मुकाबला करने में मजबूत इच्छाशक्ति के साथ दुनिया का नेतृत्व कर भारत ने अपनी क्षमताओं का भली-भांति प्रदर्शन कर दिया है। दुनिया को भारत की शक्ति का अहसास होने के साथ संकट से निपटने में मदद भी मिली है। सामाजिक सांस्कृतिक रूप से आनेवाले वर्ष भारतवर्ष के उत्थान, चौमुखी विकास के हैं। पूरी अपेक्षा है कि 2022/23 तक हमारी अर्थव्यवस्था उठान पर होगी और जल्दी ही हम 5 ट्रिलीयन अर्थव्यवस्था के द्वार पर होंगे।
के सी पांडे ने कहा कि संकट काल में भारत ने अपनी वास्तविक शक्ति को पहचान संघर्ष करने और विजय पाने की विशेष क्षमता प्रदर्शित की है। हर नागरिक अपनी भूमिका समझ संघर्ष में सहयोग दे रहा है। हमने अपनी क्षमताओं को पहचाना है। अपने घर में देखिए, सारे काम लोग खुद करने लगे हैं। नौकरों सहायकों के भरोसे बैठे रहने की आदत छूटी है। सीमित संसाधनों में आराम से गुजारा करने की समझ पैदा हुई है। एसी घरों में इस्तेमाल नहीं हो रहे, उससे कम हुए तापमान और बेहतर वातावरण को लोग महसूस कर रहे। इन सबके बिना बिल्कुल जीवन चल सकता है ।
संगोष्ठी के अंतिम चरण में समापन और मंथन पश्चात उत्पन्न सत्व को समेटते संजोते हुए प्रो० बी के कुठियाला ने कहा कि मंथन से विष और अमृत दोनों निकलता है। हमें विष से बचते काबू पाते हुए प्राप्त अमृत को दुष्टों, राक्षसों के हाथों जाने से भी बचाना है जैसे भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धर अपात्र राक्षसों के हाथों में जाने से, अमृत बचाया था। क्योंकि अमृत निकालना ही नहीं उसका सदुपयोग भी जरूरी है अन्यथा सारी मेहनत बेकार जाएगी। जैसे आज दुनिया को संकट से बचाने की मेहनत और सबकुछ बलिदान भारत कर रहा है मगर फायदा उठाने में लगा चीन इस ओर भी नजर गड़ाए हुए है और मौका मिलते ही सारा मक्खन गड़प कर जाएगा। भारत के हाथों में यह सुनहरा अवसर, आकार पाएगा तो सारी दुनिया को लाभ मिलेगा, फल साझा होगा।
उन्होंने आगे कहा कि कई बेहद लाभकारी पक्ष सामने आए हैं। सबसे बड़ी बात कि यह एकदम स्पष्ट हो गया है वर्तमान तकनीकी सुविधाएं हमें बहुत सारे विभिन्न क्षेत्रों के काम घर से ही पूर्ण रूप से निपटाने में सक्षम बना चुकी हैं। यानि बड़ी संख्या में लोगों को बाहर जाने या आफिस की जरूरत ही नहीं है, व्यर्थ भाग-दौड़, खर्च, परेशानी, रोग बीमारी मोल लेने की जरूरत नहीं है। आफिस स्पेस की परेशानी और खर्च खत्म, सड़क पर भीड़भाड़ कम, आवागमन का खर्च बढ़ेगा। तेल कम जलेगा, धुआं, शोर कम होगा, गर्मी कम होगी, समय बचेगा, थकान कम होगी ऊपर से प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी। शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति का अवसर है, सरकार भी अध्ययन कर रही। यह समझा जा रहा कि इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी खत्म करना और लगभग तिहाई चौथाई बच्चों ( जिनके पास नहीं है) को टेबलेट या मोबाइल जैसे उपकरणों से सुसज्जित कर देना समस्त शिक्षा को ऑनलाइन लाने में कामयाब कर देगा। इस दिशा में गंभीरता से विचार हो रहा है।
निष्कर्ष तौर पर उन्होंने कहा कि भोग आधारित जीवन शैली से दुनिया का मोह भंग हुआ है। अनावश्यक उत्पादन, विज्ञापन, विपणन, खर्च से बचने की तरफ ध्यान गया है। नेट के माध्यम का उपयोग आसान, त्वरित, दूरियां खत्म करने वाला, मितव्ययी और व्यापक प्रसार वाला है। हम सभी तकनीकक्षम बनें, सीखें, लोगों को सिखाएं। आज गोष्ठी में उभरकर आए तथ्यों, अवसरों की जानकारी व लाभ जन जन तक पहुंचाएं। इन सब के बीच अपने मेहनतकश वर्ग को बिल्कुल न भूलें, उन्हें जागरूक, कार्यक्षम और राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित स्वाभिमानी नागरिक बनने में मदद करें।