
31 अगस्त 2019 उत्तरी दिल्ली । पंचनद शोध संस्थान, उत्तरी दिल्ली अध्ययन केन्द्र द्वारा “अनुच्छेद 370 और भविष्य का कश्मीर” विषय पर गोष्ठी का आयोजन वरिष्ठ नागरिक मनोरंजन केन्द्र, C-7 केशव पुरम, दिल्ली में किया गया । संगोष्ठी में विषय की प्रस्तुति सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री रवीन्द्र कुमार रायजादा ने की । श्री रायजादा ने कहा कि जम्मू कश्मीर मुद्दे को सुलझाने में और इस निष्कर्ष तक पहुंचाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों का महत्वपूर्ण योगदान है । प्रचारकों से यह बात अधिवक्ताओं तक पहुंची और गहन चर्चा विमर्श के बाद स्वयंसेवकों के पास यह चर्चा पहुंची इसी प्रकार स्वयंसेवकों से होते हुए सामान्य जन तक भी यह चर्चा का विषय बना और 370 की समाप्ति की एक जनभावना देश में बनी । यह कार्य केवल एक या दो महीनों में पूरा नहीं हो गया वल्कि इसके लिए वर्षों का समय लगा और इसी कार्य के लिए ही जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र की स्थापना की गई थी । उन्होंने बताया कि भारतीय जनता पार्टी 370 के मुद्दे पर बहुत गम्भीर थी इसीलिए उन्होंने तमाम विरोधियों के कटाक्षों को सहन करते हुए भी जम्मू कश्मीर में अपने धुर विरोधी पीडीपी के साथ सरकार बनाई । जम्मू कश्मीर में सरकार बनाना भी कश्मीर के अध्ययन का ही एक अंग हो सकता है क्योकि सरकार में रहकर वहां की व्यवस्था और कार्यप्रणाली को समझना भी अति आवश्यक था । उन्होने ‘सिस्टम और गवर्नेंस’ पर जोर देते हुए कहा कि यह नागरिक के चारों ओर घूमने वाली व्यवस्था है इसको समझना आवश्यक है । श्री रायजादा ने अनुच्छेद 370 पर संवैधानिक पक्ष भी प्रस्तुत किया । उन्होंने कहा कि संविधान में सार्वभौमिकता की चर्चा की गई है सार्वभौमिकता से तात्पर्य है कि जो सर्वमान्य हो और न्यायालय में चुनौतीपूर्ण न हो । संविधान के भाग 3 में मानवाधिकारों को रखा गया है और यह सार्वभौमिकता के आधार पर ही परिभाषित हैं परन्तु अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू कश्मीर में सार्वभौमिकता की परिभाषा इससे अलग है । जिसके कारण जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार लागू नहीं होते हैं और कोई भी इन अधिकारों की मांग भी नहीं कर सकता । भारत में किसी भी राज्य के पास अपनी स्वतन्त्र शक्ति नहीं है यह संविधान द्वारा दी गई शक्तियां मात्र हैं । परन्तु जम्मू और कश्मीर में ऐसा नहीं था । वहां रक्षा-युद्ध-विदेश और संचार के अतिरिक्त केन्द्र के पास कोई भी शक्ति जम्मू एवं कश्मीर में नहीं थी । 25 नवम्बर 1949 को अनुच्छेद 370 वहां के राजा और केन्द्र सरकार द्वारा असंवैधानिक तरीके से लगाई गई । और बाद में इसे और पुष्ट करने के लिए स्थाई निवासियों को परिभाषित किया गया । यह परिभाषा वहां की विधायिका द्वारा 1954 में परिभाषित की गई । इस परिभाषा के अनुसार 1944 से पहले जो भी जम्मू और कश्मीर में रह रहे थे वही स्थाई निवासी कहलाएंगे और इनकी संतानें ही स्थाई निवासी होंगी । स्थाई निवासियों को ही अधिकार दिए गए जैसे राज्य में नौकरी स्थाई निवासियों को ही दी जाएगी, राज्य में जमीन खरीदने का अधिकार मात्र स्थाई निवासियों को होगा, उच्च शिक्षा में स्थाई निवासियों को ही प्रवेश दिया जाएगा, स्थाई निवासी ही राज्य की सरकार चुनेंगे, स्थाई निवासियों को ही बोट देने और चुनाव लड़ने का अधिकार होगा । उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 का दुरुपयोग 70 सालों से होता आया है और इसके भविष्य में भी दुरुपयोग होने की संभावना थी इसलिए इसका हटना आवश्यक था । 1984 के बाद संविधान का कोई भी संशोधन वहां लागू नहीं हो पाया । अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगो को उनका हक नहीं मिल पाया । बात सिर्फ कश्मीर में जमीन खरीदने की नहीं है संविधान के सैड्यूल 6 के अनुसार और भी कई राज्य हैं जहां खेती की जमीन आप नहीं खरीद सकते । परन्तु भारत का कोई भी व्यक्ति कहीं भी नौकरी कर सकता है । यह भारत की सांस्कृतिक एकता के लिए भी आवश्यक है । केवल जम्मू कश्मीर में ही ऐसा नहीं है । जम्मू कश्मीर और लद्दाख केन्द्र शासित प्रदेश प्रदेश बन गए हैं जिसके कारण भारत की सांस्कृतिक एकता दिखेगी । केन्द्र शासित बनने से वहां भ्रष्टाचार समाप्त करने में मदद मिलेगी और जवाबदेही भी निर्धारित होगी । अब लद्दाख को छठे सेड्यूल में डालने का रास्ता भी साफ हो गया है । जिसके कारण वहां की संस्कृति को भी संरक्षण प्राप्त होगा । भविष्य में जम्मू कश्मीर और लद्दाख भारत के अन्य राज्यों की भांति विकास और एकता के लिए अग्रसर हो जाएंगे । गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ.कृष्णचन्द्र पाण्डे ने की उन्होने कहा कि जम्मू कश्मीर भारत की ऐतिहासिक विरासत है उसे भारत से अलग नहीं देखा जा सकता । जब तक हम भारत और कश्मीर का इतिहास नहीं पढेंगे तब तक कश्मीर को नहीं समझ सकते । पहले वहां के राजा हिन्दू हुआ करते थे और उनकी एक लम्बी परम्परा हमें दिखती है । पहली बार शेख अब्दुल्ला ने यह बीज डाला कि कश्मीर में मुसलमान अधिक हैं और यहां का राजा मुसलमान होना चाहिए । आजादी के बाद पं. नेहरू और शेख अब्दुल्ला ने ही इस समस्या को जन्म दिया था । गोष्ठी का संचालन श्री गोविन्द वल्लभ ने किया और विषय प्रवेश श्री शिवकुमार जी ने किया । धन्यवाद ज्ञापन उत्तरी दिल्ली अध्ययन केन्द्र की संयोजिका डॉ.सुनीता ने किया । गोष्ठी में अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे सभी ने चर्चा में भाग लिया और वन्दे मातरम् के साथ गोष्ठी का समापन किया गया ।