पाश्चात्य संस्कृति के बढते प्रभाव ने भारत में धर्म की परिभाषा बदल दी है : डॉ.सुरेन्द्र मोहन मिश्रा

panchnad31कुरुक्षेत्र 31-12-2014, पंचनद शोध संस्थान, अध्यन केन्द्र कुरुक्षेत्र के तत्वाधान में धर्म और राष्ट्रीय एकता विषय पर एक मासिक विचार गोष्ठी का आयोजन गीता निकेतन आवासीय विद्यालय के परिसर में हुआ | गोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर डॉ सुरेन्द्र मोहन मिश्रा , प्रोफेसर, संस्कृत, पाली एवं प्राकृत विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, ने शिरकत की | डॉ मिश्रा ने अपने वक्तव्य में कहा की सभी धर्म मानवता को सन्देश देते हैं | लेकिन समाज ने स्वार्थवश धर्म के प्रारूप को बदल दिया है | धर्म और अंग्रेजी के शब्द रिलिजन से जोड़ दिया है | पाश्चात्य संस्कृति के बढते प्रभाव ने भारत में धर्म की परिभाषा बदल दी है | वेद, उपनिषद और पुराणों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा की धर्म ही मनुष्य को महान बनाता है | उन्होंने धर्म के लिए दस मंत्र सुझाय | उन्होंने कहा की धर्म और राष्ट्र का गहरा सम्बन्ध है | यदि धर्म को हानि होती है तो राष्ट्र को भी हानि होती है और यदि राष्ट्र की सीमायें घटती है तो भी धर्म घटता है | उन्होंने कहा की धर्म का अर्थ सम्प्रदाय से भिन्न है | एक सम्प्रदाय धर्म का छोटा अंग माना जाता है परन्तु उसे धर्म संज्ञा देना गलत है | उन्होंने भारत की प्रशंसा करते हुए कहा की भारत एक पूर्ण देश है | जिसमे सभी तरह की सम्पदा, भिन्न-भिन्न लोग, भाषाए, परम्पराए होते हुए भी एकता है | उदाहरण अरुणाचल प्रदेश है जिसमे दस भाषाएँ बोली जाने के बावजूद भी वह भारत का अभिन्न अंग है |

इस अवसर पर पंचनद शोध संस्थान हरियाणा के अध्यक्ष डॉ ऋषि गोयल, डॉ सीडीएस कौशल, डॉ बंसी लाल, डॉ, मधु दीप सिंह सहित नगर के गणमान्य व्यक्ति मोजूद थे |

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