
गोष्ठी की शुरुआत में भानु धमीजा ने पंचनद स्टडी सेंटर के पदाधिकारियों का धन्यवाद करते हुए कहा कि शासन व्यवस्था एक ऐसा मुद्दा है जो हर नागरिक को हर रोज़ प्रभावित करता है और इस पर खुली बहस की आवश्यकता है। हम एक जीवंत समाज हैं जो संविधान का सम्मान तो करते हैं पर उसे कुछ ऐसा विधान नहीं मानते जिसमें संशोधन, परिवर्तन या सुधार की गुंजायश ही न हो। जीवंत समाज समय की मांग के अनुसार स्वयं को ढालता है और उसके लिए आवश्यक संसाधन जुटाता है। संविधान भी भूमिका भी एक ऐसे संसाधन या उपकरण की सी है जो समाज को सामर्थ्यवान बनाता है।

उन्होंने कहा अमरीका के 230 साल के इतिहास में एक भी अमरीकी राष्ट्रपति तानाशाह नहीं बन पाया जबकि भारतीय संविधान के लागू होने के 25 साल के भीतर ही इसका अंगभंग हो गया। जो संविधान खुद को ही न बचा सका वह देश को क्या बचाएगा। उन्होंने इस धारणा का विरोध किया कि गरीबी अथवा अशिक्षा के कारण भारतीय समाज एक बेहतर संविधान के योग्य नहीं है। उन्होंने कहा कि यह भारतीय समाज ही था जिसने आपात काल के बाद पहले ही चुनाव में इंदिरा गांधी को सत्ता से हटाकर अपने विवेक का परिचय दिया था। धमीजा ने जोर देकर कहा कि सांसदों एवं विधायकां को अपनी इच्छा से मतदान का अधिकार नहीं है। यह न केवल अनैतिक है बल्कि पूरी तरह से अवैध एक परंपरा को कानूनी मान्यता दे दी है। यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है कि हमारे प्रतिनिधि अपनी मर्जी से वोट नहीं दे सकते और उन्हें पार्टी ह्विप का पालन करना पड़ता है। संसदीय प्रणाली को अक्सर इसलिए बढ़िया माना जाता है क्यांकि इसमें सरकार तेजी से काम कर सकती है और चंूकि यह संसद के प्रति जवाबदेह है इसलिए यह ज्यादा उत्तरदायी है जबकि अमरीकी शासन प्रणाली में यह खासियत है कि वहां सरकार मनमानी नहीं कर सकती और उसे कदम कदम पर संसद की सहमति लेनी होती है जिससे गलतियों से बचना संभव हो जाता है। भानु धमीजा ने श्रोताओं के सभी प्रश्नों का खुल कर उत्तर दिया और संवेदनशील प्रश्नों का उत्तर भी बड़े सलीके से दिया।
अंत में पंचनद स्टडी सेंटर के चंडीगढ़ चैप्टर के सचिव दीपक वशिष्ठ ने भानु धमीजा और श्रोताओं का धन्यवाद किया।