पंचनद शोध संस्थान के व्याख्यान माला में पहुंचे डा. मुरली मनोहर जोशी

चंडीगढ़, 21 सितंबर : पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि आज देश की नदियों की हालत बहुत दयनीय है, गंगा नदी तो कानपुर में पहचान में नहीं आती, यही हाल कावेरी और गोदावरी का है। इसलिए गंगा और कावेरी को आपस में जोडऩे से भी क्या लाभ होगा, यह तो वह बात हो गई कि  दो भिखारी मिलकर क्या अरबपति बन सकते हैं?  पर्यावरण पर सभी देश चिंतित हैं और यूएनओ जो आज कह रहा है कि यह बात 30 साल पहले मैंने कही थी।

डा. जोशी शनिवार को देर सायं पंजाब विश्वविद्यालय के विधि सभागार में पंचनद शोध संस्थान और पीयू के पर्यावरण तथा चंडीगढ़ के पर्यावरण विभाग द्वारा आयोजित पर्यावरण एवं जल की वैश्विक समस्या व समाधान विषय पर आयोजित सेमीनार में मुख्यवक्ता के तौर पर बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस डा. भारत भूषण प्रसून ने की,  विशिष्ट अतिथि पीयू के कुलपति प्रो. राजकुमार थे।

इस अवसर पर पंचनद शोध संस्थान के अध्यक्ष डा. के.एस. आर्य, संस्थान के निदेशक प्रो. बी.के. कुठियाला और पीयू के पर्यावरण विभाग की अध्यक्ष डा. सुमन मोर मुख्यतौर पर शामिल थे। मंच संचालन डा. ऋषि ने किया,  सबसे पहले डा. अजय कुमार ने मुख्य वक्ता डा. जोशी का परिचय कराया, उन्होंने जानकारी दी कि डा. मुरली मनोहर जोशी ने भौतिकी में अपना रिसर्च पेपर हिंदी में दिया था, 6 से 14 साल के बच्चों के लिए शिक्षा को एक मौलिक अधिकार बनाया था, इसके अलावा उनके कार्यकाल में शिक्षा में अभूतपूर्व कार्य हुए थे। उन्होंने कहा कि यदि डा. जोशी का परिचय ठीक से कराने लग गए तो समय और शब्द कम पड़ जाएंगे। 

इस अवसर पर डा. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि पर्यावरण के लिए अमेजन, हिमालय और तिब्बत बहुत ही महत्वपूर्ण है, हिमालय और तिब्बत की नदियां सूख रही हैं जबकि अमेजन आग की भेंट चढ़ा हुआ है। दुनिया का तापमान लगातार बढऩे से मुख्य ग्लेशियर पिंघल रहे हैं जिनसे की तटीय इलाकों के शहर जिनमें मुंबई, कोची, विशाखापटनम और यहां तक सूरत, कांडला और कोलकत्ता तक का जलमग्न होने का खतरा मंडरा रहा है। यह दिन दूर नहीं जब यह द्वारका की तरह जलसमाधि  न ले लें। 

डा. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि आज बढ़ते तापमान और जलस्तर से आस्टे्रलिया, फिलिपिंस, जापान, बैंकाक ,  पेरिस और  अमेरिका का एक बड़ा हिस्सा चिंतित है। उन्होंने कहा कि आप अंदाजा लगाइए कि जब तापमान यदि  औसतन 45-46 डिग्री हो जाएगा तो फिर कैसे जीवन स्थिर रह पाएगा। एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा कि दुनिया का औसतन तापमान ढाई से 3 डिग्री बढ़ सकता है और एक रिपोर्ट तो 4 डिग्री तक तापमान के बढऩे की बात कह रही है। 

डा. जोशी ने कहा कि तापमान बढऩे का प्रभाव भूमि पर तो पड़ता ही है साथ ही जल का अधिक वाष्पीकरण होने लगता है, इसकी वजह से जलाशयों का जलस्तर बहुत तेजी से गिरने लगता है। बढ़ते तापमान और गिरते जलस्तर की वजह से हरियाणा और पंजाब के कई हिस्सों में रेगिस्तान जैसे हालात बनते जा रहे हैं। अधिक वाष्पीकरण के फलस्वरूप पहाड़ी क्षेत्रों में बेमौसमी बरसात, भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसके कारण उत्तराखंड में बहुत से गांव खाली हो गए हैं और यह देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा है क्योंकि पड़ोस में चीन लगता है। अब जब यह हालात होंगे तो जो शहर अब अपने आपको ठीकठाक समझ रहे हैं तो उनको भी विस्थापित लोगों की समस्या से जूझना होगा। 

डा. जोशी ने कहा कि पर्यावरण की वजह से भविष्य में भोजन की भी दिक्कत आएगी, क्योंकि सीमित भूमि होने की खाद्यान्न अधिक नहीं पैदा किया जा सकता। उन्होंने कहा कि ऐसा विकास जो पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए हो वह होना चाहिए और आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण सरक्षंण एवं प्रदूषणरहित हो जो भावी पीढ़ी  के लिए स्वच्छ एवं अधिक संसाधन उपलब्ध कर सके। डा. जोशी ने कहा कि 30 साल पहले भी पंचनद शोध संस्थान के व्याख्यान माला में कहा था और उसे आज भी दोहरा रहा हूं कि सस्टेनबल डेवलपमेंट की जगह सस्टेनबल कंजम्पसन पर जोर देना होगा।

मानव सभ्यता को संतुलित विकास की जरूरत है, लेकिन इसके उलट हो रहा है, ट्रम्प का जो चीन व कोरिया से चल रहा है वह जरूरत से ज्यादा के चलते हो रहा है। डा. जोशी ने चुटकी लेते हुए कहा कि वे मंगल ग्रह पर नहीं जाना चाहते इसी धरती पर रहना चाहते हैं, इसलिए हमें प्रकृति को बचाकर रखना होगा। वहीं, डा. जोशी का भाषण रविवार को भी जारी रहेगा, पीयू के मुल्कराज आनंद सभागार में सुबह साढ़े 10 बजे डा. जोशी लोगों की जिज्ञासा का समाधान करेंगे। 

डा. जोशी ने कहा कि पर्यावरण के लिए अमेजन, हिमालय और तिब्बत  बहुत ही महत्वपूर्ण है-लेकिन  हिमालय और तिब्बत की नदियां सूख रही हैं जबकि अमेजन आग की भेंट चढ़ा हुआ है-दुनिया का तापमान लगातार बढऩे से मुख्य ग्लेशियर पिंघल रहे हैं -जिनसे की तटीय इलाकों के शहर जिनमें मुंबई, कोची, विशाखापटनम और यहां तक सूरत, कांडला और कोलकत्ता तक का जलमग्न होने का खतरा मंडरा रहा है-यह दिन दूर नहीं जब यह द्वारका की तरह जलसमाधि  न ले लें।

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