डाॅ. मनमोहन वैद्य : एक बार काॅलेज के दूसरे वर्ष में पढ़ रहे एक विद्यार्थी ने अपने परिचय में बताया ‘‘वह छोटी कहानियां लिखता है।’’ ‘कैसी छोटी कहानियां? पूछने पर उसने मुझे हाल में लिखी एक छोटी कहानी सुनाई। चुनाव चल रहे थे, इसलिए उसकी कहानी का विषय भी चुनाव ही था। कहानी थी –
एक राज्य में चुनावों की घोषणा हुई। चार उम्मीदवारों ने पर्चे दाखिल किए। ये उम्मीदवार थे वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, जल प्रदूषण और अन्न प्रदूषण। चारों उम्मीदवारों ने एक ही चुनाव चिन्ह ‘मनुष्य’ की मंाग की। चुनाव अध्ािकारी चक्कर में पड़ गया। चारों एक ही चुनाव चिन्ह क्यों चाहते थे? कायदे से एक चुनाव चिन्ह किसी एक उम्मीदवार को ही दिया जा सकता था। चुनाव अधिकारी ने उन चारों को एक साथ बुलवाया। उन्हें अपनी समस्या बताई।
हल ढूंढने के लिए उसने उम्मीदवारों से अपना-अपना पक्ष रखने को कहा कि वे ‘मनुष्य’ चुनाव चिन्ह ही क्यों चाहते थे? साथ ही उन्हंे यह भी स्पष्ट कर दिया कि जिसका प्रतिपादन सबसे अधिक प्रभावी होगा उसे ‘मनुष्य’ चुनाव चिन्ह आबंटित कर दिया जाएगा। अन्य उम्मीदवारों को कोई दूसरे चुनाव चिन्ह चुनने होंगे। हर एक ने कहा कि मनुष्य ने ही उसे जन्म देने, पालन करने और उसे विकसित करने का उस पर बहुत बड़ा उपकार किया है। मनुष्य ही उसके अस्तित्व का मूल कारण है। इसलिए केवल वही ‘मनुष्य’ चुनाव चिन्ह पाने का हकदार है।
एक मर्मस्पर्शी सत्य को उस विद्यार्थी ने अपनी छोटी सी कहानी में बड़े सहज ढंग से प्रस्तुत किया था। भूमि, वायु, जल और अन्न के प्रदूषण और उसके दुष्परिणाम स्वरूप विश्व में बढ़ रही उष्णता, इन समस्याओं की चक्की में केवल मानव जाति ही नहीं, सारी दुनिया पीसी जा रही है और इसकी सभी को चिंता है। विडम्बना यह है कि इसके मूल में जो लोग या समुदाय हैं वे अनपढ़, अविकसित या पिछड़े वर्ग के नहीं हैं, वे अपने आप को सबसे विकसित, उन्नत, पढ़े-लिखे और आधुनिक मानने वाले लोग हैं। फिर ऐसा क्यों हुआ? कारण, जिसका उन्हें भी अब एहसास हो रहा है। यह है कि इन (तथाकथित) आधुनिक, सबसे अधिक विकसित, उन्नत और सुशिक्षित लोगों का सृष्टि और मानवता ही नहीं वरन् समग्र जीवन के प्रति दृष्टिकोण खण्डित, गलत और अधूरा था। इसलिए उनकी गाड़ी विकास के नाम पर विनाश की ओर गति से चल पड़ी है।
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